समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड विधेयक को राजभवन ने अपनी स्वीकृति देकर राष्ट्रपति को भेज दिया है। राष्ट्रपति से स्वीकृति मिलने के बाद इस विधेयक के कानून का रूप लेने और इसे उत्तराखंड में क्रियान्वित करने का रास्ता साफ हो जाएगा। राष्ट्रपति से विधेयक को शीघ्र स्वीकृति मिली तो लोकसभा चुनाव से पहले ही उत्तराखंड में यह कानून अस्तित्व में आ सकता है।
देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य है, जिसने समान नागरिक संहिता बनाने की पहल की है। पुष्कर सिंह धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता विधेयक पारित करने के लिए इसी माह पांच से सात फरवरी तक विधानसभा का विस्तारित सत्र आहूत किया था।
विधानसभा में गत सात फरवरी को पारित होने के बाद इस विधेयक को राजभवन भेजा गया था। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने विधेयक को राष्ट्रपति को भेज दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहले ही कह चुके हैं कि विधेयक को स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाएगा।
विधेयक में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। विधेयक को चार खंडों विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है। समान नागरिक संहिता का अधिनियम बनने से समाज में व्याप्त कुरीतियां व कुप्रथाएं अपराध की श्रेणी में आएंगी और इन पर रोक लगेगी।
इनमें बहु विवाह, बाल विवाह, तलाक, इद्दत, हलाला जैसी प्रथाएं शामिल हैं। संहिता के लागू होने पर किसी की धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। विधेयक में महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार के प्रविधान किए गए हैं। समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए प्रस्तुत विधेयक के दायरे में समूचे उत्तराखंड को लिया गया है।
कानून बनने पर यह उत्तराखंड के उन निवासियों पर भी लागू होगा, जो राज्य से बाहर रह रहे हैं। राज्य में कम से कम एक वर्ष निवास करने वाले अथवा राज्य व केंद्र की योजनाओं का लाभ लेने वालों पर भी यह कानून लागू होगा। अनुसूचित जनजातियों और भारत के संविधान की धारा-21 में संरक्षित समूहों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।